नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा विवाद: दक्षिण भारत में उठती विरोध की लहर

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March 17, 2025

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नई शिक्षा नीति में हिंदी भाषा को शामिल करने पर विवाद

भारत की नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लेकर दक्षिण भारत में एक बार फिर विरोध के स्वर उठ रहे हैं। केंद्र सरकार ने नीति में त्रिभाषा फार्मूला लागू करने का प्रस्ताव रखा है, जिसमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने की बात कही गई है। हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया है। वहीं, आंध्र प्रदेश सरकार ने इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाया है।

तमिलनाडु सरकार का सख्त रुख

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने से स्पष्ट इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि राज्य में पहले से ही द्विभाषी नीति (तमिल और अंग्रेजी) लागू है और हिंदी को अनिवार्य रूप से लागू करना राज्य की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर प्रहार होगा। स्टालिन ने हाल ही में राज्य के बजट दस्तावेजों में रुपये के चिह्न को भी तमिल भाषा में परिवर्तित कर दिया था।

आंध्र प्रदेश का संतुलित रुख

दूसरी ओर, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि भाषा का उद्देश्य केवल संवाद स्थापित करना होता है, न कि नफरत फैलाना। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंदी को सीखना एक विकल्प हो सकता है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में शिक्षा लेना आसान होता है और ज्ञान भाषा से नहीं बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता से आता है।

नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा विवाद

डिप्टी सीएम पवन कल्याण का बयान

आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने भी इस मुद्दे पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा को जबरदस्ती थोपना या फिर उसका अंधाधुंध विरोध करना, दोनों ही सही नहीं हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी हिंदी का विरोध नहीं किया, बल्कि इसे अनिवार्य बनाए जाने के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार छात्रों को अपनी मातृभाषा के साथ-साथ किसी अन्य भारतीय या विदेशी भाषा को सीखने की स्वतंत्रता दी गई है।

क्या कहती है नई शिक्षा नीति?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत छात्रों को तीन भाषाओं में शिक्षा देने की बात कही गई है, जिसमें एक भाषा मातृभाषा होगी, दूसरी भारतीय भाषा और तीसरी कोई विदेशी भाषा हो सकती है। हालांकि, यह अनिवार्य नहीं है कि तीसरी भाषा हिंदी ही हो। राज्यों को अपने अनुसार भाषाओं का चयन करने की स्वतंत्रता दी गई है।

दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध क्यों?

दक्षिण भारतीय राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में हिंदी भाषा का विरोध ऐतिहासिक रूप से होता आया है। इसका मुख्य कारण यह है कि इन राज्यों की क्षेत्रीय भाषाएं पहले से ही मजबूत हैं और वहां हिंदी का प्रचलन बहुत कम है। कई लोगों का मानना है कि हिंदी को थोपने से उनकी क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान और महत्व कम हो सकता है।

नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा विवाद

राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव

हिंदी भाषा विवाद का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी देखा जा रहा है। कुछ दल इसे केंद्र सरकार की उत्तर भारत केंद्रित नीति का हिस्सा मानते हैं, जबकि कुछ अन्य इसे राष्ट्रीय एकता के लिए जरूरी मानते हैं। वहीं, आम जनता की राय भी बंटी हुई है। कुछ लोग हिंदी को सीखने के पक्ष में हैं, जबकि कुछ इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ मानते हैं।

निष्कर्ष

नई शिक्षा नीति और त्रिभाषा फार्मूले को लेकर दक्षिण भारत में विरोध और समर्थन दोनों देखने को मिल रहे हैं। जहां तमिलनाडु सरकार ने हिंदी को अनिवार्य बनाने का विरोध किया है, वहीं आंध्र प्रदेश सरकार ने एक संतुलित रुख अपनाते हुए भाषा सीखने की स्वतंत्रता की वकालत की है। यह विवाद भारत में भाषाई विविधता और एकता के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता को दर्शाता है। अंततः, यह जरूरी है कि भाषा को राजनीति से अलग रखा जाए और इसे केवल शिक्षा और संवाद के माध्यम के रूप में देखा जाए।

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