बॉलीवुड अभिनेता जॉन अब्राहम हमेशा से अपने सशक्त व्यक्तित्व और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाते रहे हैं। हाल ही में, उन्होंने भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा और अपनी राष्ट्रीय पहचान को लेकर एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा के मीडिया तक में चर्चा का विषय बना दिया है। उनके इस बयान की गूंज इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि यह देश में बढ़ते सामाजिक-राजनीतिक विमर्श के बीच आया है।
“मैं अल्पसंख्यक हूं, पर भारत में महसूस करता हूं सुरक्षा”
जॉन अब्राहम ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, “मेरी मां पारसी हैं, पिता सीरियाई ईसाई। मैं एक अल्पसंख्यक समुदाय से आता हूं, लेकिन मुझे भारत में कभी असुरक्षित महसूस नहीं हुआ।” उन्होंने आगे जोड़ा कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है और वे स्वयं को देश का “जीता-जागता उदाहरण” मानते हैं। यह बयान उस सवाल के जवाब में आया, जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं।
जॉन का बहुसांस्कृतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि
जॉन अब्राहम की पहचान भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है। उनकी मां, फिरोज़ा इरानी, एक पारसी (ज़रथुस्त्र धर्मावलंबी) हैं, जबकि पिता, अब्राहम जॉन, केरल के सीरियाई ईसाई परिवार से ताल्लुक रखते हैं। यह मिश्रित विरासत जॉन को भारत के “गंगा-जमुनी तहज़ीब” का प्रतीक बनाती है। उनके शब्दों में, “पारसियों से किसे समस्या हो सकती है? हम तो बेहद छोटा समुदाय हैं, फिर भी इस देश ने हमें हमेशा सम्मान दिया।”
क्यों महत्वपूर्ण है यह बयान?
- राष्ट्रीय एकता का संदेश: जॉन का यह कथन उस नैरेटिव को चुनौती देता है कि भारत में अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं। उन्होंने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कहा कि उन्हें कभी भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा।
- सेलेब्रिटी की ज़िम्मेदारी: एक सार्वजनिक हस्ती होने के नाते, जॉन का यह बयान समाज में सकारात्मक बहस को बढ़ावा देता है। उन्होंने साफ़ किया कि उनकी पहचान “अभिनेता” से पहले “भारतीय” है।
- वैश्विक संदर्भ: उन्होंने यह भी कहा कि भारत से ज़्यादा सुरक्षित उन्हें विदेशों में भी महसूस नहीं हुआ, जो देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़बूती देता है।

विरोधाभास या वास्तविकता?
जॉन के इस बयान पर कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए हैं। कई ट्विटर यूजर्स ने लिखा कि एक प्रिविलेज्ड सेलेब्रिटी का अनुभव आम अल्पसंख्यकों की ज़िंदगी से अलग हो सकता है। हालांकि, जॉन ने इसी इंटरव्यू में स्पष्ट किया कि वे सिर्फ़ अपनी सच्चाई बता रहे हैं: “मैं इस देश में पैदा हुआ, पला-बढ़ा। यहां की मिट्टी ने मुझे वह मुकाम दिया, जिस पर मैं आज हूं।”

‘द डिप्लोमैट’ और सामाजिक सरोकार
जॉन की नई फिल्म ‘द डिप्लोमैट’ एक वास्तविक घटना पर आधारित है, जो 2014 में इराक़ में IS के चंगुल में फंसे भारतीय नर्सों के बचाव मिशन को दर्शाती है। यह फिल्म न सिर्फ़ देशभक्ति का संदेश देती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे भारत अपने नागरिकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देता है। जॉन का बयान इस संदर्भ में और प्रासंगिक लगता है।
निष्कर्ष: एकता की बात करता बयान
जॉन अब्राहम का यह बयान उस भारत की तस्वीर पेश करता है, जो विविधताओं को अपनी ताक़त मानता है। हालांकि, यह बहस का विषय हो सकता है कि क्या हर अल्पसंख्यक की अनुभूति ऐसी ही है। परंतु, इस बात से इनकार नहीं कि जॉन जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व का यह स्टैंड सामाजिक सद्भाव का संदेश देता है। जैसा कि उन्होंने कहा, “मैं हर जगह भारतीय झंडा लेकर चलता हूं” — यह वाक्य न केवल उनके गर्व को दिखाता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि भारत की असली ताक़त उसकी एकता में है।