नई दिल्ली, 05 सितंबर 2025: भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को शिक्षक दिवस के अवसर पर एक भव्य समारोह में देश भर के 47 शिक्षकों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए। इस मौके पर दिए गए अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा कि “भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने के लिए, हमारे शिक्षकों को विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिक्षकों के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए।” यह कार्यक्रम राष्ट्रपति भवन में आयोजित किया गया, जहाँ शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और पुरस्कार प्राप्त करने वाले शिक्षक उपस्थित थे।

शिक्षा है सम्मान और सुरक्षा की आधारशिला

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन की शुरुआत शिक्षा के मौलिक महत्व को रेखांकित करते हुए की। उन्होंने कहा, “जिस तरह भोजन, वस्त्र और आवास व्यक्ति की बुनियादी ज़रूरतें हैं, उसी तरह शिक्षा भी उसके सम्मान और सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।” उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि एक संवेदनशील और समझदार शिक्षक ही बच्चे के मन में यह भावना पैदा कर सकता है।

एक पूर्व शिक्षिका होने के नाते, राष्ट्रपति ने अपने शिक्षण अनुभवों को साझा करते हुए उस दौर को अपने जीवन का “सबसे सार्थक काल” बताया। यह व्यक्तिगत अनुभव उनके संदेश को और भी प्रामाणिक और प्रभावशाली बना गया।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, शिक्षक दिवस 2025
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चरित्र निर्माण है शिक्षक का प्राथमिक धर्म

राष्ट्रपति के भाषण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा शिक्षा के उद्देश्य पर केंद्रित था। उन्होंने स्पष्ट किया कि शिक्षा का मकसद सिर्फ़ अकादमिक रूप से उत्कृष्ट छात्र तैयार करना नहीं, बल्कि अच्छे चरित्र वाले नागरिक गढ़ना है।

“संवेदनशील, ज़िम्मेदार और समर्पित छात्र, जो नैतिक आचरण का पालन करते हैं, उन छात्रों से कहीं बेहतर हैं जो सिर्फ़ प्रतिस्पर्धा, किताबी ज्ञान और स्वार्थ में रुचि रखते हैं,” उन्होंने कहा। उनका मानना है कि एक आदर्श शिक्षक में “भावनाएँ और बुद्धि” का सही संतुलन होता है, और यही संतुलन छात्रों के व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ता है।

‘स्मार्ट ब्लैकबोर्ड’ नहीं, ‘स्मार्ट शिक्षक’ हैं सबसे ज़रूरी

डिजिटल युग में शिक्षण पद्धतियों में आ रहे बदलाव पर बात करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने एक महत्वपूर्ण बिंदु उठाया। उन्होंने माना कि स्मार्ट क्लासरूम और आधुनिक तकनीक का अपना महत्व है, लेकिन इन सबसे कहीं ज़्यादा ज़रूरी एक ‘स्मार्ट शिक्षक’ है।

“स्मार्ट शिक्षक वह है जो अपने छात्रों की विकास संबंधी ज़रूरतों को समझता है,” उन्होंने कहा, “वह स्नेह और संवेदनशीलता के साथ पढ़ाई की प्रक्रिया को दिलचस्प और असरदार बनाता है।” यह ऐसे ही शिक्षक हैं जो छात्रों को समाज और देश की ज़रूरतों के अनुरूप तैयार कर सकते हैं।

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बालिका शिक्षा पर विशेष ज़ोर

राष्ट्रपति के संबोधन में बालिका शिक्षा को लेकर विशेष प्राथमिकता झलकी। उन्होंने इसे “सर्वोच्च महत्व” का विषय बताते हुए कहा कि लड़कियों की शिक्षा में निवेश, परिवार, समाज और राष्ट्र के निर्माण में एक “अमूल्य निवेश” के समान है।

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों के विस्तार और वंचित वर्ग की लड़कियों के लिए विशेष सुविधाओं की बात को दोहराया। साथ ही, उन्होंने एक मार्मिक अपील करते हुए शिक्षकों से कहा, “आप बालिकाओं की शिक्षा में जितना अधिक योगदान देंगे, शिक्षक के रूप में आपका जीवन उतना ही सार्थक होगा।” उन्होंने शिक्षकों से शर्मीले और कम सुविधा प्राप्त छात्रों पर विशेष ध्यान देने का भी आग्रह किया।

एनईपी 2020: वैश्विक ज्ञान महाशक्ति का रोडमैप

राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को भारत के शैक्षिक भविष्य की रीढ़ बताया। उन्होंने कहा कि इस नीति का मुख्य उद्देश्य भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप में स्थापित करना है, और इस लक्ष्य की प्राप्ति पूरी तरह से शिक्षकों के योगदान पर निर्भर करती है।

उन्होंने कहा कि इसके लिए स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा और कौशल शिक्षा – शिक्षा के तीनों क्षेत्रों में हमारे शिक्षक संस्थानों को सक्रिय योगदान देना होगा। राष्ट्रपति ने अपना विश्वास जताया कि भारत के शिक्षक अपने अमूल्य योगदान से देश को इस मुकाम तक पहुँचाने में सक्षम हैं।

निष्कर्ष

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का यह संबोधन नए भारत की शिक्षा यात्रा में शिक्षकों की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है। यह केवल एक भाषण नहीं, बल्कि देश के शिक्षकों के लिए एक रोडमैप और एक प्रेरणा है। तकनीकी सुधारों के साथ-साथ शिक्षा के मानवीय पहलू पर ज़ोर देकर, राष्ट्रपति ने एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की परिकल्पना पेश की है जो समावेशी, चरित्र-निर्माण करने वाली और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी है। जैसा कि उन्होंने कहा, देश को वैश्विक ज्ञान की महाशक्ति बनाने का सफर कक्षाओं से शुरू होता है, और इस सफर के असली नायक我们的教师 हैं।

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