परिचय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई हालिया 40 मिनट की द्विपक्षीय बैठक ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। सात साल बाद पीएम मोदी का चीन दौरा न केवल कूटनीतिक दृष्टि से अहम माना जा रहा है, बल्कि यह वैश्विक समीकरणों को भी प्रभावित कर सकता है। जब अमेरिका, चीन पर दबाव बनाए रखने की कोशिश कर रहा है और रूस-यूक्रेन युद्ध ने विश्व व्यवस्था को हिला दिया है, तब भारत और चीन का साथ आना कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हो सकता है।


🔹 बैठक का महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 40 मिनट की द्विपक्षीय बैठक ने भारत-चीन रिश्तों को नई दिशा दी है। जानिए बैठक का महत्व, वैश्विक असर और भविष्य की राह।

यह मुलाकात शंघाई सहयोग संगठन (SCO) समिट के दौरान हुई। दोनों नेताओं के बीच सीमा प्रबंधन, कैलाश मानसरोवर यात्रा, और भारत-चीन सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करने जैसे मुद्दों पर सहमति बनी।

  • शी जिनपिंग का बड़ा बयान: उन्होंने कहा कि “ड्रैगन और हाथी का साथ आना दुनिया के लिए आवश्यक है।”
  • मोदी का स्पष्ट संदेश: प्रधानमंत्री ने परस्पर सम्मान और विश्वास के आधार पर संबंध आगे बढ़ाने की बात रखी।

इससे यह साफ है कि भारत-चीन रिश्तों में अभी भी एहतियात बरती जा रही है, लेकिन सहयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।


🔹 अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य

इस बैठक का सबसे बड़ा असर अमेरिका पर देखा गया।

  • डोनाल्ड ट्रंप की नाराजगी साफ झलक रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, वे भारत में होने वाले आगामी क्वाड समिट में हिस्सा लेने से पीछे हट सकते हैं।
  • अमेरिकी मीडिया और यूरोपीय विश्लेषकों का मानना है कि भारत-चीन की नजदीकी वॉशिंगटन की रणनीति के लिए झटका है।
  • वहीं चीन की सरकारी मीडिया जैसे ग्लोबल टाइम्स और चाइना डेली ने लिखा कि भारत-चीन रिश्तों में सुधार “तार्किक विकल्प” और “वैश्विक जिम्मेदारी” है।

🔹 चीन की मजबूरियां

चीन की अर्थव्यवस्था इस समय गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। रियल एस्टेट सेक्टर संकट में है, बड़ी कंपनियां उत्पादन केंद्र भारत की ओर शिफ्ट कर रही हैं। सीमा विवाद और भू-राजनीतिक तनावों के बीच चीन समझ चुका है कि भारत जैसे बड़े बाजार और उभरती शक्ति से रिश्ते बिगाड़ना उसके लिए लंबे समय तक फायदेमंद नहीं होगा।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की 40 मिनट की द्विपक्षीय बैठक ने भारत-चीन रिश्तों को नई दिशा दी है। जानिए बैठक का महत्व, वैश्विक असर और भविष्य की राह।

भारत का दृष्टिकोण

भारत ने पिछले वर्षों में अपनी रणनीति स्पष्ट की है –

  • सीमा सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं।
  • रक्षा तैयारियों को मजबूत करना (जैसे राफेल लड़ाकू विमानों की तैनाती)।
  • अंतरराष्ट्रीय मंचों पर स्वतंत्र और संतुलित नीति अपनाना।

मोदी सरकार ने यह भी संकेत दिया कि दोस्ती शर्तों पर आधारित होगी। यानी चीन को विश्वास और सम्मान बनाए रखना होगा, वरना पुरानी स्थिति वापस आ सकती है।


🔹 जनभावनाएं और स्वागत

पीएम मोदी के चीन पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। भारतीय प्रवासियों ने “भारत माता की जय” और “वंदे मातरम्” के नारों से माहौल गूंजा दिया। यह दृश्य चीन के सोशल मीडिया पर भी छा गया, जहां कई लोगों ने भारत-चीन संबंधों को नए युग की शुरुआत बताया।


🔹 आगे की राह

विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बैठक भारत-चीन संबंधों का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकती है। हालांकि, अविश्वास की दीवार अब भी मौजूद है। भारत अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से मजबूत रिश्ते बनाए हुए है, वहीं चीन रूस के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या दोनों एशियाई दिग्गज अपने मतभेदों को पीछे छोड़कर सहयोग की राह पर आगे बढ़ पाएंगे?


📝 निष्कर्ष

प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग की बैठक ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि भारत अब किसी दबाव में नहीं बल्कि अपने हितों के आधार पर फैसले ले रहा है। यह “नए भारत” की तस्वीर है, जो पश्चिमी दबाव को नकारते हुए अपनी शर्तों पर रिश्ते तय करना चाहता है। आने वाले समय में इस बैठक का असर न केवल भारत-चीन रिश्तों बल्कि वैश्विक राजनीति पर भी गहरा होगा।

Spread the love