नोएडा: एक तरफ एक पिता का आक्रोश है, जिसकी बेटी निक्की की संदिग्ध हालत में मौत हो गई। उसका आरोप है कि दहेज के लिए उसकी बेटी को उसके ससुराल वालों ने मार डाला। दूसरी तरफ उसी परिवार की एक और बहू है, मीनाक्षी भाटी, जो पिछले 9 साल से दहेज के उत्पीड़न का दंश झेल रही है और अपने मायके में शरण लिए हुए है।

यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उस सामाजिक बुराई की है जो आज भी बेटियों की जिंदगी को नरक बनाए हुए है।

पिता का दर्द: “यह हत्यारे हैं, इनको गोली लगनी चाहिए”

निक्की के पिता का दर्द टीवी स्क्रीन पर छलक आया था। रो-रोकर उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

“नोटबंंदी का वक्त था, फिर भी मैंने शादी की। शादी में मैंने स्कॉर्पियो गाड़ी दी, टॉप मॉडल। और जो कपड़े-लत्ते होते हैं, जो सामाजिक तौर से वो सारा दिया… यह हत्यारे हैं। इनको गोली लगनी चाहिए। एक मोबाइल चोर को पैर में गोली मार देते हैं, उसका घर तोड़ देते हैं। यह हत्यारे, इनको हत्या के बदले हत्या चाहिए।”

उनका आरोप है कि निक्की के पति और ससुराल वाले लगातार दहेज की मांग करते रहे। उनकी बेटी ने पार्लर खोला, तो उसकी आधी कमाई भी लेते रहे। शराब और अय्याशी के पैसे के लिए उसे तंग किया जाता था।

दूसरा पहलू: वो बहू जो 9 साल से इंतजार कर रही है इंसाफ का

लेकिन इस सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है, और वह है मीनाक्षी भाटी। मीनाक्षी, निक्की के भाई रोहित पायला की पत्नी हैं। पिछले 14 महीने से वह अपने मायके में हैं और उनका आरोप है कि उन्हें भी उसी परिवार ने दहेज के लिए प्रताड़ित किया और घर से निकाल दिया।

मीनाक्षी सीधे निक्की के पिता से सवाल करती हैं:
“जो बाप अपनी बेटी के लिए इंसाफ मांग रहा है, वो दूसरे की बेटी जो पीहर में छोड़ रखी है, जो घर से बेघर कर रखी है, उसे भी इंसाफ दिला दो। पहले उसके लिए सोचो जो 9 साल से कर रखी है। तेरी तो आज हुई है, उस बेटी के लिए भी सोच लो।”

9 साल का सफरनामा: मारपीट, दहेज की मांग और जबरन गर्भपात

मीनाक्षी बताती हैं कि उनकी शादी को 9 साल हो गए हैं, लेकिन इस दौरान वह मुश्किल से 9 महीने ही अपने ससुराल में रह पाईं। शादी के तुरंत बाद से ही दहेज की मांग शुरू हो गई।

“वो कभी 5 लाख लाओ, कभी 10 लाख लाओ, कभी 15 लाख लेकर आओ… मेरे पापा से मांगते रहते थे। पापा आते तो उनके मुंह में भर देते। अब बाप नहीं है तो मुझे हमेशा के लिए छोड़ दिया।”

सबसे भयावह आरोप तब सामने आता है जब मीनाक्षी जबरन गर्भपात की बात करती हैं। उनका कहना है कि उनकी सास उन्हें “सेक्स बदलने की देसी दवाई” देती थी ताकि लड़का पैदा हो, क्योंकि उन्हें लड़की अच्छी नहीं लगती थी।

“हां जी, मेरी सास ने ही करवाया था। मुझे ऐसी दवाई देती थी… झूठ बोलकर गलत दवाई खिलाते थे मुझे।”

मीनाक्षी के अनुसार, उनके ससुराल वालों ने न सिर्फ उनके साथ मारपीट की, बल्कि उनके भाई पर गोली भी चलाई थी।

“बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से पाए?”

मीनाक्षी का परिवार इस पूरे मामले पर एक कड़वा सच उजागर करता है। उनका कहना है कि जिस परिवार की मानसिकता दहेज लेने और औरतों को प्रताड़ित करने की है, उससे अच्छे व्यवहार की उम्मीद करना बेमानी है।

मीनाक्षी की शादी में भी उनके पिता ने खूब दिया था। वह बताती हैं, “पापा जी ने बहुत कुछ दिया था, हद से ज्यादा। स्कॉर्पियो गाड़ी दी थी, 20-21 तोला सोना दिया था, फर्नीचर और कपड़े दिए थे। कुल मिलाकर 35-40 लाख रुपये खर्च हुए थे।”

लेकिन दहेज की लालच कभी खत्म नहीं हुई। मीनाक्षी कहती हैं, “फर्क सिर्फ इतना है कि निक्की की मौत हो गई और मैं जिंदा हूं। बस मेरी सांसें बची रहीं, वरना हालात एक जैसे थे।”

निष्कर्ष: एक सामाजिक चेतना की जरूरत

यह मामला सिर्फ एक परिवार की कलह नहीं, बल्कि हमारे समाज के उस घिनौने चेहरे को दिखाता है जो आज भी बेटियों को बोझ और दहेज को उनका अधिकार मानता है।

  • कानून की सीमा: दहेज विरोधी कानून होने के बावजूद ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं।
  • सामाजिक जिम्मेदारी: केवल कानून ही काफी नहीं है, समाज को भी ऐसे परिवारों का बहिष्कार करने की जरूरत है।
  • महिला सशक्तिकरण: लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना, ताकि वे ऐसे जुल्म का डटकर सामना कर सकें।

निक्की को न्याय मिलना निस्संदेह जरूरी है। लेकिन मीनाक्षी जैसी अनगिनत बहुओं और बेटियों के सवाल भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं। जब तक हम दहेज जैसी सामाजिक बुराई को पूरी तरह से नहीं मिटाते, तब तक ऐसी दर्दभरी कहानियां सुनने को मिलती रहेंगी। एक बेटी का दर्द दूसरी बेटी के दर्द से कम नहीं होता। इंसाफ सबका बराबर मिलना चाहिए।