काठमांडू: नेपाल इन दिनों एक गहरे राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। पिछले कुछ दिनों में देश की राजधानी काठमांडू और अन्य शहरों में जो कुछ हुआ, उसे विशेषज्ञ एक ‘रेजिम चेंज ऑपरेशन’ का नाम दे रहे हैं। देश का तख्तापलट होता दिख रहा है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का अचानक से सुराग नहीं चल रहा, तो वहीं नेपाली सेना को सड़कों पर उतरना पड़ा है।
क्या हुआ नेपाल में?
स्थिति इतनी गंभीर है कि नेपाल की पुलिस ने सरकार को स्पष्ट कर दिया कि वह मंत्रियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकती। पुलिस के हाथ खड़े करने के बाद सेना को मैदान में उतरना पड़ा। हेलीकॉप्टरों के जरिए मंत्रियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। राष्ट्रपति भवन पर हमला हुआ है और कई वरिष्ठ मंत्रियों के घरों को आग के हवाले कर दिया गया या भारी पथराव किया गया।
वो पुराना ट्वीट जो आज हकीकत बनकर उभरा
यूट्यूबर और राजनीतिक विश्लेषक गौरव आर्य ने 30 जून 2020 को एक ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि नेपाल की सरकार चीनी दूतावास से चल रही है और केपी शर्मा ओली चीनी हितों के लिए काम कर रहे हैं। उस वक्त इस ट्वीट को भारी ट्रोलिंग और आलोचना का सामना करना पड़ा था। लेकिन आज की स्थिति को देखते हुए, गौरव आर्य का दावा सच साबित होता नजर आ रहा है।

ओली पर चीनपरस्त होने के आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं। जब चीन ने नेपाल की सीमा में घुसपैठ करके पांच गांवों पर कब्जा कर लिया और वहां के निवासियों को चीनी नागरिक घोषित कर दिया, तब भी ओली सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। ओली के विवादास्पद बयान, जैसे कि भगवान राम का नेपाली होना, भी भारत-नेपाल संबंधों में तल्खी लाते रहे।
सोशल मीडिया बैन है केवल बहाना
नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों की शुरुआत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के बैन होने से जुड़ी बताई जा रही है। हालांकि, रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह बैन सरकार की इच्छा से नहीं, बल्कि नेपाल की अदालत के आदेश पर लगाया गया था। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को रजिस्टर करने का समय दिया था, जिसके ना होने पर कोर्ट के आदेश पर इन्हें बैन किया गया।
विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया बैन केवल एक ट्रिगर था। आक्रोश की असली वजह व्यापक भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और एक ऐसी सरकार के प्रति नाराजगी थी जिस पर लगातार चीन का एजेंट होने के आरोप लगते रहे।
कौन चाहता है नेपाल में तख्तापलट?
नेपाल की रणनीतिक स्थिति इसे वैश्विक महाशक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
- अमेरिकी हित: अमेरिका दक्षिण एशिया में चीन का प्रभाव कम करना चाहता है। नेपाल में चीन-समर्थक सरकार का तख्तापलट अमेरिका के हित में है। बांग्लादेश में शेख हसीना और पाकिस्तान में इमरान खान के खिलाफ हाल के घटनाक्रम इसी रणनीति का हिस्सा बताए जा रहे हैं।
- चीनी हित: चीन, नेपाल को अपने ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का हिस्सा बनाना चाहता है। केपी शर्मा ओली की सरकार उसके लिए एक वफादार प्रॉक्सी थी। ओली का सत्ता से बाहर जाना चीन के लिए एक बड़ा झटका है।
- भारत की चिंता: भारत के लिए नेपाल की स्थिरता सर्वोपरि है। नेपाल में अशांति का सीधा असभारत की सुरक्षा पर पड़ता है, खासकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और सिक्किम जैसे सीमावर्ती राज्यों पर। भारत की कोशिश हमेशा से यही रही है कि नेपाल किसी भी बाहरी ताकत का खिलौना न बने।
क्या है भविष्य?
नेपाल की स्थिति अभी भी अत्यंत तरल (फ्लूइड) है। काठमांडू का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद है और भारतीय दूतावास ने सभी भारतीयों को सतर्क रहने की चेतावनी जारी की है। लोग सड़कों पर हैं और काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह को नया नेता बनाने की मांग उठ रही है।
निष्कर्ष:
नेपाल में जो कुछ हो रहा है, वह महज सरकार विरोधी प्रदर्शन नहीं है। यह एक जटिल भू-राजनीतिक खेल है, जहां अंतरराष्ट्रीय शक्तियां अपने-अपने हित साधने में लगी हैं। नेपाल की संप्रभुता और स्थिरता बनाए रखना न केवल नेपाली जनता का, बल्कि भारत जैसे पड़ोसी देशों की भी जिम्मेदारी है। भारत को चाहिए कि वह नेपाल में सभी पक्षों के साथ संवाद बनाए रखे और यह सुनिश्चित करे कि नेपाल के भविष्य का फैसला केवल और केवल नेपाल की जनता करे। नेपाल किसी भी महाशक्ति का ‘प्लेग्राउंड’ नहीं बन सकता।