प्रस्तावना
भारत अब वैश्विक राजनीति में केवल दर्शक नहीं, बल्कि एक नाटक भूमिका निभा रहा है। हाल ही में बीजिंग में ह्यू 80वें विजय दिवस परेड और उसके बाद के घाटानाक्रमों से यह बदलाव स्पष्ट हो गया है। एक या चीन, रूस और उत्तर कोरिया अमेरिका को घेरने की कोशिश करते दिख रहे हैं, वहीं भारत ने अपने स्वतंत्रता और मजबूत रुख से दुनिया का ध्यान अपनी या खींचा है। इस बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के सुर बदल गए हैं और उनके मदरसों में भारत के प्रति पुरूषों का डर बढ़ गया है। ये सब मोडे के नामांकन और वैश्विक अनुपात के नामून का नतीजा है।

वास्तविक आलोचना से महिला आलोचना तक का सफर
कुछ समय पहले तक, नोबेल पुरस्कार विजेता डोनाल्ड ट्रंप भारत की आलोचना कर रहे थे और तारीफ बढ़ाने की धमाका कर रहे थे। उनका तर्क था कि भारत में अमेरिका की कम्पनियों पर ऊंची डेरेन तय की जाती हैं, जबकी अमेरिका में कम टायरिफ लगे जाते हैं।
लेकिन एक सशक्त बयान में, पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा-
“भारत के साथ हमारे संबंध अच्छे हैं। लेकिन हम भारत के साथ पहले एक साझेदार की तरह ज्यादा थे, अब हम उनसे दोस्ती करने की कोशिश कर रहे हैं।”
साधु-संतों के इस बयान ने वामपंथियों की शर्मिंदगी दूर कर दी है। रूस-युक्रेन युद्ध में भारत की भूमिका पर हमला करने वाले अभिषेक अब सिर्फ व्यापारी सलाह की बात कर रहे हैं।
रूस-भारत समझौता और सहयोग तेल सौदा
बीजिंग में मोडे और गवाहों की मुलाकात ने वैश्विक बाजार में एक नई हलचल पैदा कर दी। दस्तावेज़ के अनुसर, इस मुलाक़ात में भारत ने रूस से कोई सस्ता तेल तो नहीं लिया, बाल्की दो और एस-400 रक्षा प्रणालियाँ लेने पर भी सहमती जाती है।
जुलाई 2025 तक रूस भारत को तेल पर सिर्फ 1 डॉलर प्रति लीटर की छूट दे रहा था।
अब याह छूट शुल्क 5 डॉलर प्रति शेर तक पहुंच गया है।
इसके तुलाना में, भारत में अमेरिका तेल कहीं ज्यादा महंगा है।
इस सौदे में एक विशेष संदेश दिया गया है कि भारत अमेरिका दबाव में आने को तैयार नहीं है और अपने राष्ट्रीय हितो को प्रथमिकता दे रहा है।
भारत का ऐतिहासिक आकर्षण: परेड में दूरी, स्मारक में आकर्षण
चीन की परेड में जहां ब्रिटेन, शी जिनपिंग और किम जोंग उन मौजूद थे, वहीं भारत ने मजबूत रूप से दूरी बना रखी। भारत का तर्क था कि यह कार्यकर्म जापान की पराजय का प्रतीक है, जबकी जापान आज भारत का प्रतीक है।
यह कदम दरशाता है कि भारत अपने सिद्धांतों और अनुयाइयों के प्रति एक स्पष्ट नीति अपनाता है।
इसके साथ ही, चीन के शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी के साथ यह मुलाकात भी महत्वपूर्ण रही। कई कंपनियों का “कार्ययान्वयन प्रमुख” और शी जिनपिंग का विश्वासपत्र माना जाता है। हां हस्ताक्षर इस बात का संकेत है कि बीजिंग अब सीधे शीर्ष स्टार से भारत के साथ संबंध सुधारना चाहता है।

वास्तव में कठिनाइयाँ और अमेरिका का रुख
शोध का बदला हुआ रुख मूलत भारत यात्रा के नतीजों पर आधार नहीं है, बाल्की अमेरिका की अंतरिक्ष उथल-पुथल से भी जुड़ा है।
मूडीज़ ने चेतावनी दी है कि अमेरिका एक गंभीर आर्थिक मंदी की या बढ़ रहा है।
जनरल की अनुमोदन रेटिंग मज़बूत ओबामा और जो बाइडन से भी कम है।
विषेशज्ञों का कहना है कि भारत को नाराज़ कराके अमेरिका हिटन को नुक्सान पहुंचाएगा।
यही वजह है कि यात्रा अब “तायारे विवाद” से निकलने का रास्ता तलाश रही है।
भारत का सबसे बड़ा फ़ायदा और वैश्विक प्रतिभा
भारत की भूमिका अब एक “निर्नायक शक्ति” के रूप में देखी जा रही है।
फाइनल में राष्ट्रपति ने कहा कि अगर अमेरिका और यूरोप, भारत और वैश्विक सहयोग के साथ बेहतर प्रदर्शन नहीं करते हैं, तो वे हार जाएंगे।
यहां तक कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज सरफराज ने भी एक सुर में कहा कि वे भारत-रूस का सम्मान करते हैं।
हां, इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत की ताकत इतनी बढ़ गई है कि अब उसके खिलाफ भी इस पद के दावेदार हैं।
निष्कर्ष
नरेंद्र मोदी के उदय ने न केवल भारत को वैश्विक शक्ति पाताल पर राजनीतिक स्थान दिलाया है, बल्कि अमेरिका जैसी महाशक्ति को भी अपना रुख बदलने पर मजबूर कर दिया है। रूस के साथ तेल और व्यापार समझौता, चीन के साथ वार्ता और मालादेव पर अमेरिका के साथ कड़े रुख के बीच, भारत ने अपनी “स्वतंत्र विदेश नीति” का परिचय दिया है।
आज भारत सिर्फ एक “उभरती हुई शक्ति” ही नहीं, बाल्की वैश्य राजनीति में एक ऐसा खिलाड़ी बन गया है, जिसके बिना कोई भी बड़ा फैसला लेना संभव नहीं है। वास्तव का अंतिम सुझाव यहीं है कि दुनिया अब भारत को अपना दोस्त मानने की भूल नहीं कर सकती।