भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने रविवार को एक बड़ी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि उत्तर-पश्चिम भारत में अगस्त 2025 की बारिश 2001 के बाद सबसे अधिक दर्ज की गई है। असामान्य रूप से हुई इस भारी वर्षा के कारण कई राज्यों में बाढ़ और जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। विभाग ने पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के लिए विशेष अलर्ट जारी किया है।
बारिश के आँकड़े
आईएमडी के अनुसार, अगस्त महीने में उत्तर-पश्चिम भारत में औसत से 40-45% अधिक बारिश दर्ज की गई है।
- दिल्ली-NCR में 15 से अधिक दिनों तक लगातार मध्यम से भारी बारिश हुई, जिससे यातायात और दैनिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ।
- हरियाणा और पंजाब में खेतों में पानी भर गया, जिससे धान और सब्जियों की फसलों को नुकसान हुआ।
- राजस्थान के उत्तरी भागों में भी रिकॉर्ड तोड़ वर्षा हुई, जहां सामान्य से दोगुनी बारिश दर्ज की गई।

विशेषज्ञों की राय
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस वर्ष मानसून की गतिविधि असामान्य रही है। अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से लगातार नमी आने के कारण उत्तर-पश्चिम भारत में वर्षा प्रणाली सक्रिय रही।
आईएमडी के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने बताया –
“2001 के बाद पहली बार अगस्त महीने में इतना अधिक बारिश का आंकड़ा दर्ज हुआ है। आने वाले दिनों में भी उत्तर भारत के कई हिस्सों में भारी बारिश की संभावना बनी हुई है।”
राज्यों पर प्रभाव
- दिल्ली और NCR – लगातार हुई बारिश से सड़कों पर जलभराव और ट्रैफिक जाम आम बात हो गई।
- पंजाब-हरियाणा – किसानों को फसलों के नुकसान का डर सताने लगा है। खेतों में धान की फसल जलमग्न हो गई है।
- उत्तर प्रदेश (पश्चिमी भाग) – नदियों का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है।
- राजस्थान – रेगिस्तानी इलाकों में भी असामान्य वर्षा ने लोगों को हैरान कर दिया है।
अलर्ट और तैयारी
आईएमडी ने आने वाले दिनों के लिए Orange और Red अलर्ट जारी किया है।
- स्कूलों और कॉलेजों में छुट्टी की संभावना जताई गई है।
- आपदा प्रबंधन दलों को अलर्ट पर रखा गया है।
- निचले इलाकों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की गई है।
नतीजा
उत्तर-पश्चिम भारत में अगस्त 2025 की बारिश ने बीते 24 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। जहां यह बारिश किसानों के लिए राहत और नुकसान दोनों लेकर आई है, वहीं शहरों में जलभराव और यातायात समस्या ने आमजन का जीवन मुश्किल बना दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से भी जुड़ा हो सकता है और आने वाले वर्षों में मानसून के स्वरूप में और बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं।