मुंबई । बिग बॉस 19 के लोकप्रिय प्रतियोगी और अभिनेता गौरव खन्ना ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान अपने निजी जीवन से जुड़ा एक ऐसा फैसला साझा किया है जो भारतीय समाज में आमतौर पर एक’ टैबू’ माना जाता है । गौरव ने खुलासा किया कि जहां वह खुद एक पिता बनना चाहते हैं, वहीं उनकी पत्नी और यूट्यूबर अकांक्षा चमोला का बच्चों को लेकर अलग नजरिया है । अकांक्षा बच्चे पैदा नहीं करना चाहतीं और गौरव ने इस फैसले का पूरा सम्मान करते हुए कहा,” मुझे उनके इस फैसले का साथ देना है ।”

यह मामला सिर्फ एक सेलिब्रिटी कपल की पर्सनल चॉइस से कहीं आगे की बात है । यह भारत के उस बदलते सामाजिक ताने- बाने की ओर इशारा करता है, जहां अब महिलाएं और जोड़े शादी और परिवार की पारंपरिक परिभाषा को चुनौती दे रहे हैं ।

क्या है पूरा मामला?


गौरव खन्ना ने एक यूट्यूब चैनल को दिए इंटरव्यू में इस विषय पर बात की । उन्होंने बताया,” मैं फादरहुड( पिता बनना) चाहता हूं, लेकिन मेरी वाइफ( अकांक्षा) नहीं चाहती हैं । यह उनका निर्णय है और मुझे उसका साथ देना है ।” हालांकि, गौरव ने भविष्य में पिता बनने की संभावना को पूरी तरह से खारिज भी नहीं किया है । उन्होंने आगे कहा कि अगर भविष्य में अकांक्षा का मन बदलता है, तो वह इसके लिए खुश हैं, लेकिन फिलहाल वे उनके फैसले का सम्मान करते हैं ।

गौरव और अकांक्षा की शादी को कई साल हो चुके हैं और दोनों की जोड़ी सोशल मीडिया पर काफी फेमस है । अकांक्षा एक सफल यूट्यूबर और कंटेंट क्रिएटर हैं, जो अपने हास्य वीडियो और व्लॉग्स के लिए जानी जाती हैं ।

क्यों लेते हैं आजकल जोड़े ऐसे फैसले?


गौरव और अकांक्षा का मामला एक बड़े ट्रेंड का हिस्सा है, जिसे’ चाइल्डफ्री'( Childfree) कहा जाता है । चाइल्डफ्री का मतलब है बच्चे न होने का सचेतन फैसला । यह चाइल्डलेस( बच्चे न होने की मजबूरी) से अलग है । इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं

करियर और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएं आज की महिलाएं और पुरुष दोनों ही अपने करियर और व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं । बच्चे पैदा करना अक्सर करियर में एक ब्रेक या बड़े बदलाव की वजह बनता है, खासकर महिलाओं के लिए ।

वित्तीय स्थिरता बच्चों की परवरिश, शिक्षा और देखभाल पर होने वाला खर्च बहुत ज्यादा है । कई जोड़े खुद को वित्तीय रूप से इतना सक्षम नहीं पाते कि वे एक बच्चे की जिम्मेदारी उठा सकें ।

मानसिक तैयारी की कमी हर कोई मानसिक और भावनात्मक रूप से पैरेंट्स बनने के लिए तैयार नहीं होता । यह एक जीवनभर की भारी जिम्मेदारी है ।

दुनिया की स्थिति जलवायु परिवर्तन, बढ़ती प्रदूषण की समस्या और अनिश्चित भविष्य जैसे कारण भी कुछ लोगों को बच्चे पैदा न करने के लिए प्रेरित करते हैं ।

जीवनशैली की पसंद कुछ जोड़े अपनी स्वतंत्रता, यात्रा और साथ बिताने के समय को प्राथमिकता देते हैं और मानते हैं कि बच्चे इस जीवनशैली में बाधक होंगे ।

समाज की प्रतिक्रिया और’ कार्ड’ का दबाव


भारतीय समाज में शादी के बाद’ गुड न्यूज’ और’ बेबी प्लान’ का सवाल एक आम बात है । जोड़ों, विशेषकर महिलाओं पर बच्चा पैदा करने का भारी सामाजिक दबाव( अक्सर’ कार्ड’ कहा जाता है) होता है । ऐसे में अकांक्षा जैसा फैसला लेना और सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना एक साहसिक कदम माना जा रहा है ।

सोशल मीडिया पर इस खबर के बाद मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं । कई लोग गौरव और अकांक्षा के फैसले की सराहना कर रहे हैं और इसे एक प्रगतिशील सोच बता रहे हैं । वहीं, कुछ लोगों ने हैरानी जताई है और पारंपरिक सवाल उठाए हैं, जैसे” बुढ़ापा कौन देखेगा?” या” शादी का मकसद ही क्या रह जाता है?”

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?


रिश्तों के विशेषज्ञ मानते हैं कि शादी से पहले या शादी के शुरुआती दौर में ही पार्टनर के साथ बच्चों की इच्छा पर खुलकर बातचीत करना बेहद जरूरी है ।

डॉ. प्राची शर्मा, एक जानी- मानी रिलेशनशिप काउंसलर, कहती हैं,” गौरव और अकांक्षा का मामला एक आदर्श उदाहरण है कि एक रिश्ते में सम्मान और संवाद कैसे होना चाहिए । दोनों की इच्छाएं अलग हैं, फिर भी वे एक- दूसरे के फैसले का सम्मान कर रहे हैं । यह जरूरी नहीं कि हर जोड़े की परिभाषा एक जैसी हो । एक स्वस्थ रिश्ता वह है जहां दोनों साथी सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें, चाहे उनका फैसला समाज के मानकों से मेल खाता हो या नहीं ।”

निष्कर्ष एक नए युग की शुरुआत


गौरव खन्ना और अकांक्षा चमोला की कहानी सिर्फ एक खबर नहीं है, बल्कि एक सामाजिक बदलाव का संकेत है । यह दर्शाता है कि आधुनिक भारतीय जोड़े अब दूसरों की उम्मीदों पर खरा उतरने के बजाय अपनी खुशी और सहमति को प्राथमिकता दे रहे हैं । पारंपरिक रूप से, महिलाओं की इच्छाओं को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता था, लेकिन अब वे अपनी पसंद और नापसंद स्पष्टता से रख रही हैं ।

गौरव का अपनी पत्नी के फैसले का समर्थन करना एक प्रगतिशील पति की मिसाल पेश करता है । अंत में, यह फैसला सिर्फ और सिर्फ दो लोगों – गौरव और अकांक्षा – का है । और जैसा कि गौरव ने कहा, एक साथी होने का मतलब है एक- दूसरे के फैसलों का साथ देना, चाहे वह समाज को कितना भी असामान्य क्यों न लगे । यह आधुनिक प्रेम और साझेदारी की असली परिभाषा है ।

यह लेख सामान्य जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है । किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले संबंधित विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए ।