नई दिल्ली: कुछ साल पहले का वह मीम आपको जरूर याद होगा, जहां अमेरिका दुनिया से पूछता था, “तुम क्या हो?” आज वक्त का पहिया घूम चुका है। आज अमेरिका के साथ वही हो रहा है, और सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के साथ-साथ अब यूरोप भी अमेरिका से यही सवाल पूछ रहा है। यूरोप के नेता, जो कुछ ही दिन पहले डोनाल्ड ट्रंप की धमकियां सुनकर लौटे थे, अब एक के बाद एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से परेशान और आने वाली सर्दियों के संकट से घबराया पूरा यूरोप अब सीधे भारत के संपर्क में है।
क्यों यूरोप ने भारत का रुख किया?
फ्रांस, फिनलैंड, जर्मनी और यूक्रेन के बाद अब यूरोपीय आयोग (European Commission) और यूरोपीय परिषद (European Council) के अध्यक्षों ने पीएम मोदी से टेलीफोनिक वार्ता की है। यूरोप वह सब कुछ अब भारत को बता रहा है, जो वह अब तक अमेरिका से कहता आया था। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि यूरोप का अमेरिका से मोहभंग हो गया और उसे लगने लगा कि रूस और सर्दी के संकट से उसे सिर्फ भारत ही बचा सकता है?

इसकी कहानी शुरू होती है डोनाल्ड ट्रंप और व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात से। यूरोपीय नेताओं ने ट्रंप पर दबाव बनाया था कि वह पुतिन से मिलें और यूक्रेन युद्ध को तुरंत खत्म करवाएं। 15 अगस्त को अलास्का में हुई उस मुलाकात के बाद ट्रंप युद्ध रुकवाने की बजाय रूस के साथ अपनी चुपचाप डील करके लौट आए। यूक्रेन को उसकी किस्मत पर छोड़ दिया और यूरोप से सीधे कह दिया कि वह अमेरिका से हथियार खरीदे। नतीजा? सारा फायदा अमेरिका का, सारा नुकसान यूरोप का।
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सर्दियों का डर और अमेरिकी हथियारों का व्यापार
यूरोप अब एक बड़ा फैसला ले चुका है। उसे समझ आ गया है कि पुतिन से सैन्य तौर पर जीता नहीं जा सकता, और इस युद्ध से जल्द से जल्द निकलना ही फायदे का सौदा है। ट्रंप की बयानबाजी से यूरोप को अहसास हो गया कि अमेरिका इस युद्ध को जानबूझकर खत्म नहीं होने देगा क्योंकि उसे हथियार बेचकर मोटा मुनाफा कमाना है। खुद डोनाल्ड ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि वह यूक्रेन और NATO देशों को हथियार बेचेंगे।
इसके ऊपर सर्दियों का मौसम आने वाला है, जब पूरा यूरोप बर्फबारी और माइनस के तापमान से जूझेगा। उस वक्त घरों और उद्योगों को गर्म रखने के लिए रूसी प्राकृतिक गैस की सख्त जरूरत होगी। अब तक यूरोप चुपचाप भारत के रास्ते रूसी तेल खरीद रहा था, लेकिन अमेरिका ने भारत को डराना-धमकाना शुरू कर दिया है। हर तरफ से यूरोप की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा सुरक्षा दांव पर लगी है।

एक के बाद एक यूरोपीय नेताओं ने मोदी को मिलाया फोन
अपनी डूबती अर्थव्यवस्था और इज्जत बचाने के लिए यूरोप ने अब सीधे भारत का दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया है।
- फ्रांस: सबसे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने पीएम मोदी से फोन पर व्यापार और यूक्रेन पर चर्चा की।
- फिनलैंड: फिनलैंड के नेताओं ने भारत से बातचीत में चिंता जताई कि अमेरिका की नीतियों की वजह से सभी हार सकते हैं।
- जर्मनी: जर्मनी ने अमेरिका की नीतियों की मिली-जुली आलोचना करते हुए पीएम मोदी के साथ मुलाकात की।
- यूरोपीय संघ: और अब, यूरोपीय परिषद के अध्यक्ष एंटोनियो कोस्टा और यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन ने संयुक्त रूप से पीएम मोदी को फोन करके लंबी बातचीत की।
भारत-यूरोप के बीच क्या हैं मुख्य मुद्दे?
इन वार्ताओं में कई अहम मुद्दे उठे:
- यूक्रेन संकट: यूरोप चाहता है कि भारत, जिसका रूस के साथ ऐतिहासिक और स्ट्रैटेजिक रिश्ता है, युद्ध को रुकवाने में और सक्रिय मध्यस्थ की भूमिका निभाए। यूरोप को उम्मीद है कि पुतिन जहां ट्रंप की नहीं सुनेंगे, वहीं पीएम मोदी की बात को गंभीरता से ले सकते हैं।
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA): यूरोप इस साल के अंत तक भारत के साथ एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता करना चाहता है। यह समझौता यूरोप की डूबती हुई अर्थव्यवस्था के लिए जीवनदान साबित हो सकता है, जो महंगाई और ऊर्जा संकट से जूझ रही है।
- IMEC कॉरिडोर: इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) पर भी गहन चर्चा हुई। इस कॉरिडोर के जरिए भारत का सामान सीधे यूरोप तक पहुंचेगा, जिससे व्यापार का रास्ता shorter और सुरक्षित होगा। हैरानी की बात यह है कि इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने की बात अब तक अमेरिका करता आ रहा था, लेकिन अब यूरोप के नेता सीधे भारत से इस पर बात कर रहे हैं।
निष्कर्ष: भू-राजनीति में भारत का बढ़ता कद
साफ है कि पूरा यूरोप अब अमेरिका को ‘बाईपास’ करके सीधे भारत के साथ जुड़ रहा है। यूरोप ने महसूस कर लिया है कि अमेरिका अपने व्यावसायिक हितों को सर्वोपरि रखता है, जबकि भारत एक विश्वसनीय और तटस्थ पार्टनर के रूप में उभरा है। पुतिन से बातचीत जैसे कूटनीतिक काम, जो पीएम मोदी कर सकते हैं, वह डोनाल्ड ट्रंप नहीं करवा पाए।
यह स्थिति भारत की बढ़ती वैश्विक हैसियत की ओर इशारा करती है। एक ऐसा देश जो न तो पश्चिम का विरोधी है और न ही रूस का दुश्मन, बल्कि एक ऐसा सभ्यतागत राष्ट्र है जो शांति और विकास की बात करता है। आने वाली सर्दी न सिर्फ यूरोप के लिए, बल्कि पूरी वैश्विक भू-राजनीति के लिए एक नई परीक्षा लेकर आएगी, और इस परीक्षा में भारत एक ‘गेम चेंजर’ के रूप में उभर रहा है।