नई दिल्ली: भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर की मालदीव की तीन दिवसीय यात्रा ने दोनों देशों के संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत की है। इस यात्रा के दौरान भारत ने मालदीव के 28 द्वीपों पर जल आपूर्ति और सीवेज प्रबंधन परियोजनाओं के विकास का अधिकार हासिल किया है, जिसे एक बड़ी कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है। यह समझौता उस सरकार के साथ हुआ है, जो ‘इंडिया आउट’ का नारा लगाकर सत्ता में आई थी और जिसने चीन के साथ मजबूत संबंध बनाए थे।
पृष्ठभूमि: बदलते रुख का सफर
मालदीव में सितंबर 2023 में राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की जीत ने भारत के लिए चिंता पैदा कर दी थी। मुइज्जू ने अपने चुनाव अभियान का केंद्र ‘इंडिया आउट’ रखा था और भारतीय सैन्यकर्मियों की वापसी की मांग की थी। सत्ता में आने के तुरंत बाद, उन्होंने तुर्की और चीन का दौरा किया। चीन की यात्रा के दौरान, मालदीव ने लगभग 36 द्वीपों पर पर्यटन विकास परियोजनाओं के लिए चीन के साथ ₹1,200 करोड़ के समझौते किए। इस कदम ने भारत में सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ा दीं, क्योंकि मालदीव भारत के दक्षिण-पश्चिम में एक रणनीतically महत्वपूर्ण स्थान पर स्थित है।
हालांकि, व्यावहारिकता और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में भारत की central role ने मालदीव के रुख को बदलने पर मजबूर कर दिया। पर्यटन, व्यापार और क्षेत्रीय स्थिरता में भारत के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस बदलाव की पहली झलक तब देखने को मिली जब राष्ट्रपति मुइज्जू जून 2024 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने पहुंचे और भारतीय विदेश मंत्री को मालदीव आमंत्रित किया।

यात्रा के प्रमुख बिंदु: सहयोग का विस्तार
डॉ. जयशंकर की यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए:
- 28 द्वीपों के लिए समझौता: भारत लगभग ₹923 करोड़ की लागत से 28 द्वीपों पर जल आपूर्ति और सीवेज प्रबंधन प्रणालियों का विकास करेगा। यह परियोजना स्थानीय लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाएगी।
- यूपीआई की शुरुआत: मालदीव में भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) को लॉन्च किया गया। इससे मालदीव में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय पर्यटकों के लिए लेनदेन आसान होगा।
- बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन: विदेश मंत्री ने माले से थिलाफुशी को जोड़ने वाली परियोजना और अड्डू एटोल में एक चार-लेन सड़क का उद्घाटन किया। ये परियोजनाएं पूर्ववर्ती सरकार के दौरान हुई समझौतों का हिस्सा हैं।
- क्षमता निर्माण: भारत मालदीव के 1000 सिविल सेवकों को प्रशिक्षण देगा, जिससे स्थानीय प्रशासनिक क्षमता मजबूत होगी।
स्थानीय और विपक्षी प्रतिक्रिया
दिलचस्प बात यह है कि मालदीव के विपक्ष ने राष्ट्रपति मुइज्जू के इस बदलते रुख का स्वागत किया है, हालांकि उन्होंने भारत-विरोधी बयानबाजी के लिए माफी मांगने की शर्त रखी है। विपक्ष का मानना है कि भारत के साथ मजबूत संबंध देश के हित में हैं। इससे स्पष्ट है कि मालदीव की घरेलू राजनीति में भी भारत के साथ सहयोग को एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है।
बांग्लादेश संकट के संदर्भ में एक संदेश
मालदीव में यह सफलता ऐसे समय में आई है जब भारत अपने एक अन्य पड़ोसी देश बांग्लादेश में उत्पन्न राजनीतिक उथल-पुथल और संभावित शरणार्थी संकट को लेकर चिंतित है। मालदीव के अनुभव से एक स्पष्ट संदेश जाता है: कोई भी देश, चाहे उसकी सरकार की विचारधारा कुछ भी हो, भारत के आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकता।
बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वहां की किसी भी सरकार के लिए भारत के साथ सम्बन्धों को दरकिनार करना स्वयं के आर्थिक हितों के लिए घातक होगा। यही कारण है कि वहां की वर्तमान अंतरिम सरकार ने अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाने के लिए खेद भी व्यक्त किया है।
निष्कर्ष: कूटनीतिक परिपक्वता की जीत
मालदीव में हुई यह सफलता भारत की परिपक्व और दूरदर्शी विदेश नीति की गवाह है। इसने उन आलोचनाओं को गलत साबित कर दिया है जो कहती थीं कि भारत की कूटनीति व्यक्ति-केंद्रित होकर रह गई है। भारत ने दिखाया है कि वह अपने रणनीतिक हितों को साधने और पड़ोसियों के साथ सहयोगपूर्ण संबंध बनाए रखने में सक्षम है।
चीन की बढ़ती उपस्थिति के बावजूद, भारत ने अपनी विकासशील साझेदार की छवि और पड़ोस की जरूरतों को समझने की क्षमता के बल पर एक बड़ी कूटनीतिक जीत दर्ज की है। मालदीव का उदाहरण अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी एक सबक है कि भारत के साथ सहयोग ही क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि की कुंजी है।