पाक्तिका/खोस्त (अफगानिस्तान): पूर्वी अफगानिस्तान के पहाड़ी इलाकों में सोमवार रात (तारीख) आए भीषण भूकंप ने एक बार फिर प्रकृति के कहर को बेबाक कर दिया है। रिक्टर पैमाने पर 6.1 की तीव्रता वाले इस भूकंप ने पाक्तिका और खोस्त प्रांतों के गांवों को तहस-नहस कर दिया, जिसमें कम से कम 800 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है और 2500 से अधिक लोग घायल हैं। आशंका जताई जा रही है कि मौत का आंकड़ा और बढ़ सकता है क्योंकि अभी भई कई लोग मलबे में दबे हुए हैं।

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क्यों इतनी भारी तबाही? भूकंप के विज्ञान और सामाजिक हालात

भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के पाक्तिका प्रांत में जमीन से लगभग 51 किलोमीटर नीचे था। आमतौर पर, गहराई में आने वाले भूकंपों का प्रभाव सतह पर कम होता है, लेकिन यहां हालात बिल्कुल विपरीत थे। इसके पीछे कई कारण हैं:

  1. भौगोलिक संवेदनशीलता: अफगानिस्तान यूरेशियन और भारतीय टेक्टोनिक प्लेटों के बीच स्थित है, जो इसे भूकंपीय रूप से अत्यंत संवेदनशील बनाता है। हिंदु कुश पर्वत श्रृंखला इसी टकराव का नतीजा है और यहां लगातार भूगर्भीय दबाव बनता रहता है।
  2. निर्माण की खराब गुणवत्ता: प्रभावित इलाकों में अधिकांश घर पत्थर, मिट्टी और कच्ची ईंटों के बने हुए हैं। ये मकान भूकंपरोधी निर्माण मानकों से कोसों दूर हैं। एक झटके में ही ये इमारतें धराशायी हो गईं, जिससे लोगों के बचने का मौका ही नहीं मिला।
  3. भूकंप का समय और स्थान: भूकंप रात के समय आया, जब ज्यादातर लोग अपने घरों में सो रहे थे। इसके अलावा, प्रभावित क्षेत्र दूरदराज के पहाड़ी इलाके हैं, जहां पहुंचना पहले से ही मुश्किल है। आपदा के बाद तो सड़कें भी मलबे और भूस्खलन की चपेट में आ गईं, जिससे राहत और बचाव कार्य और मुश्किल हो गया।

गांव के गांव मिट्टी में मिले, लोगों की कराहते हाथ

पहुंचने वाले पत्रकारों और राहतकर्मियों का कहना है कि कुछ गांवों का तो नामो-निशान तक मिट गया है। लोग अपने परिवार के सदस्यों को मलबे में से खुद ही निकालने की कोशिश कर रहे हैं। उनके पास न तो पर्याप्त उपकरण हैं और न ही मदद।

एक स्थानीय ग्रामीण, मोहम्मद ज़हीर ने बताया, “मेरा पूरा परिवार मलबे के नीचे दब गया है। मैंने अपनी आँखों के सामने अपना घर और पड़ोस ढहते देखा। हमारे पास कुछ भी नहीं बचा है। बच्चे, बूढ़े, जवान… सब मलबे में दबे हैं। हम अपने हाथों से मलबा हटा रहे हैं, लेकिन यह नामुमकिन लग रहा है।”

घायलों की संख्या इतनी अधिक है कि स्थानीय अस्पताल उन्हें संभालने में असमर्थ हैं। दवाओं, खून और चिकित्सा उपकरणों की भारी कमी है। कई घायलों को पड़ोसी प्रांतों के अस्पतालों में ले जाया जा रहा है।

राहत और बचाव कार्य में आ रही है दोगुनी मुश्किल

इस त्रासदी से निपटने के लिए तालिबान सरकार ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति की बैठक बुलाई है और सेना को राहत और बचाव कार्य में लगा दिया है। हालांकि, चुनौतियां बहुत बड़ी हैं:

  • दुर्गम इलाका: प्रभावित गांव ऊंचे पहाड़ों पर बसे हैं। भूकंप के बाद आए भूस्खलन ने कई सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है, जिससे बड़े वाहनों और राहत सामग्री का पहुंचना मुश्किल हो रहा है।
  • संसाधनों की कमी: अफगानिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट और मानवीय संकट से जूझ रहा है। देश के पास पर्याप्त बचाव उपकरण, जैसे कि स्निफर डॉग, हैवी डोजर और रेस्क्यू टूल्स, का अभाव है।
  • मौसम की मार: इस इलाके में बारिश शुरू हो गई है, जिससे मलबे में फंसे लोगों के बचने की उम्मीद कम हो रही है और राहत कार्यों में और बाधा आ रही है।
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अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बढ़ाया हाथ

इस भीषण त्रासदी के बाद दुनिया भर के देशों ने अफगानिस्तान के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की है और मदद का हाथ बढ़ाया है।

  • भारत ने तुरंत राहत सामग्री भेजने का फैसला किया है। एक विशेष विमान के जरिए दवाएं, खाने का सामान, तंबू और जरूरी मेडिकल टीम भेजी जा रही है।
  • पाकिस्तान ने भी सीमा व्यापार के लिए इस्तेमाल होने वाले मुख्य द्वार खोल दिए हैं ताकि राहत सामग्री आसानी से पहुंच सके।
  • संयुक्त राष्ट्र (UN) और यूरोपीय संघ (EU) ने अपने स्थानीय partner agencies को तत्काल मदद मुहैया कराने के निर्देश दिए हैं।

हालांकि, एक बड़ा सवाल तालिबान सरकार की मान्यता को लेकर है, जिसके चलते कई देश सीधे तौर पर सरकार को fund transfer करने में असमर्थ हैं। ऐसे में अधिकांश मदद संयुक्त राष्ट्र और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के जरिए ही पहुंच पा रही है।

निष्कर्ष: एक लंबी और दर्दभरी रिकवरी का सफर

अफगानिस्तान में आया ये भूकंप सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि एक मानवीय त्रासदी है। एक ऐसा देश जो पहले से ही भुखमरी, आर्थिक पतन और राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहा है, उसके लिए इस आपदा से उबरना बेहद मुश्किल होगा।

तात्कालिक तौर पर जरूरत है जिंदगियां बचाने, घायलों का इलाज करने और बेघर हुए लोगों को आश्रय और भोजन मुहैया कराने की। लेकिन लंबे समय में, अफगानिस्तान और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि इतने संवेदनशील इलाके में भूकंपरोधी Infra-structure कैसे विकसित किया जाए। वरना, प्रकृति का ये कहर किसी न किसी रूप में बार-बार सामने आता रहेगा। आज की सबसे बड़ी जरूरत है मानवता के नाते अफगानिस्तान के लोगों का साथ देना और उन्हें इस कठिन घड़ी में अकेला न छोड़ना।

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