नई दिल्ली:भारत और चीन के बीच बढ़ती नजदीकी से एक बार फिर नेपाल की भौहें तन गई हैं । चीनी विदेश मंत्री वांग यी की हालिया भारत यात्रा के दौरान हुए समझौतों , खासकर सीमा पर तीन दर्रों से व्यापार फिर से शुरू करने के फैसले को नेपाल ने अपने हितों के खिलाफ बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज कराया है । इस विरोध की जड़ में भारत-नेपाल के बीच दशकों पुराना कालापानी और लिपुलेख दर्रे को लेकर सीमा विवाद है ।

वह कौन सा फैसला जिससे भड़का नेपाल ?

मार्च 2022 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत की यात्रा पर आए थे । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई । इन चर्चाओं के परिणामस्वरूप जो समझौता हुआ , उसके नौवें बिंदु में एक अहम फैसला लिया गया । दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि लिपुलेख पास , शिपकिला पास और नाथुला पास – इन तीन निर्धारित व्यापारिक बिंदुओं के जरिए सीमा व्यापार को फिर से शुरू किया जाएगा । कोविड-19 महामारी के दौरान इन व्यापार मार्गों को बंद कर दिया गया था । इनके फिर से खुलने से सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सीधे व्यापार करने में आसानी होगी और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा । हालांकि , इसी फैसले ने नेपाल की नींद उड़ा दी ।

आखिर क्यों नाराज है नेपाल ?

नेपाल के विरोध की कुंजी लिपुलेख पास के नाम में छिपी है । नेपाल का दावा है कि लिपुलेख दर्रा और उसके आसपास का इलाका जिसमें कालापानी और लिंपियाधुरा शामिल हैं ऐतिहासिक रूप से उसका हिस्सा है । भारत द्वारा बिना उससे सलाह-मशविरा किए , इस इलाके से चीन के साथ व्यापारिक समझौता करना उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है । इस मुद्दे पर नेपाल की संसद में जोरदार बहस हुई । एक सांसद ने तो प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा से सितंबर में प्रस्तावित उनकी भारत यात्रा तक रद्द करने की मांग कर डाली । नेपाल ने भारत को एक राजनयिक नोट भेजकर अपना औपचारिक विरोध दर्ज कराया है ।

भारत चीन व्यापार, नेपाल विरोध
Credit:Google Image:Youtube.com

क्या है कालापानी-लिपुलेख विवाद ?

यह विवाद एक नदी के ‘उद्गम स्थल’ को लेकर है और इसकी जड़ें इतिहास में गहरी हैं । सुगौली संधि,यह विवाद ब्रिटिश भारत और नेपाल के बीच हुई सुगौली संधि से शुरू होता है । इस संधि के तहत यह तय हुआ था कि काली नदी भारत में इसे शारदा नदी के नाम से जाना जाता है के पूर्व का इलाका नेपाल का होगा और पश्चिम का इलाका भारत का । मुद्दा नदी का उद्गम स्थल विवाद इस बात पर है कि काली नदी का उद्गम स्थल कहां है । नेपाल का पक्ष नेपाल का मानना है कि काली नदी का उद्गम लिंपियाधुरा से होता है । अगर यह मान लिया जाए , तो लिपुलेख और कालापानी का क्षेत्र नेपाल के अधिकार क्षेत्र में आता है । भारत का पक्ष भारत का कहना है कि काली नदी का उद्गम कालापानी के पास से होता है । इस आधार पर , लिपुलेख का इलाका भारत के उत्तराखंड राज्य का हिस्सा है । इस असहमति के चलते यह त्रिकोणीय क्षेत्र लिपुलेख , कालापानी , लिंपियाधुरा दशकों से विवादित बना हुआ है । भारत का तर्क है कि वह 1954 से इस इलाके पर नियंत्रण रखता आया है और यहां सीमा व्यापार होता रहा है ।

क्यों महत्वपूर्ण है लिपुलेख दर्रा ?

लिपुलेख दर्रा सिर्फ एक भौगोलिक सीमा नहीं है , इसका सामरिक और धार्मिक दोनों ही तरह से बहुत महत्व है । कैलाश मानसरोवर यात्रा यह कैलाश मानसरोवर जाने का सबसे छोटा और पारंपरिक मार्ग है । भारतीय तीर्थयात्री इसी दर्रे से होकर तिब्बत जाते हैं । व्यापारिक महत्व यह भारत और चीन तिब्बत के बीच एक अहम व्यापारिक पड़ाव है । यहां से नमक , जड़ी-बूटियाँ , पशु उत्पाद आदि का व्यापार होता है , जिस पर स्थानीय जनजातियों की आजीविका निर्भर है । सामरिक महत्व यह क्षेत्र भारत-चीन-नेपाल की त्रिकोणीय सीमा पर स्थित है , जिस कारण इसका रणनीतिक महत्व बहुत अधिक है ।

चीन इस मामले में कहां खड़ा है ?

चीन ने इस विवाद में खुद को तटस्थ रखने की नीति अपनाई है । वह भारत के साथ भी व्यापारिक संबंध बढ़ाना चाहता है और नेपाल के साथ भी उसकी मजबूत साझेदारी है । ऐसे में , उसने स्पष्ट किया है कि यह भारत और नेपाल के बीच का द्विपक्षीय मामला है और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगा ।

आगे की राह क्या है ?

नेपाल के विरोध के बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह नेपाल के क्षेत्रीय दावों को खारिज करता है और लिपुलेख से व्यापार जारी रखेगा । हालांकि , दोनों देश पड़ोसी और घनिष्ठ मित्र हैं । इस विवाद का स्थायी समाधान दोनों देशों के बीच ईमानदार और खुली बातचीत से ही निकल सकता है । ऐतिहासिक दस्तावेजों , मानचित्रों और तथ्यों के आधार पर इस मुद्दे को सुलझाने की जरूरत है , ताकि दोनों देशों के बीच के मैत्रीपूर्ण संबंध और मजबूत हो सकें ।

निष्कर्ष

भारत-चीन व्यापार बढ़ाने की कोशिशें जहां एक सकारात्मक कदम हैं , वहीं पड़ोसी देशों की संवेदनाओं और ऐतिहासिक विवादों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । नेपाल का विरोध इस बात का reminder है कि कूटनीति में पड़ोसी मित्रों को साथ लेकर चलना कितना जरूरी है । लिपुलेख विवाद का समाधान केवल भारत और नेपाल के बीच आपसी विश्वास और डिप्लोमेसी से ही निकलेगा ।

Disclaimer:यह लेख समाचार रिपोर्टिंग और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी पर आधारित है । इसमें व्यक्त किए गए तथ्यों और विश्लेषण का उद्देश्य केवल पाठकों को जानकारी प्रदान करना है । यह किसी भी देश की सरकार की आधिकारिक स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करता । सीमा विवाद जटिल ऐतिहासिक और राजनयिक मामले हैं , जिनका समाधान संबंधित सरकारों के बीच बातचीत से ही संभव है ।

Spread the love