पिथौरागढ़, उत्तराखंड: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में रविवार की देर रात एक भीषण और दुर्भाग्यपूर्ण हादसा हो गया। धारचूला तहसील के ज़ोन में स्थित नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन (NHPC) की धौलीगंगा जलविद्युत परियोजना की टनल का मुख्य द्वार पहाड़ी के एक बड़े हिस्से के दरकने और गिरने से पूरी तरह बंद हो गया है। इस हादसे में टनल के अंदर काम कर रहे 19 कर्मचारी फंस गए हैं।

घटना की जानकारी मिलते ही प्रशासन, एनडीआरएफ, SDRF और स्थानीय पुलिस की टीमें रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू करने के लिए मौके पर पहुंच गई हैं। फिलहाल, फंसे हुए कर्मचारियों तक पहुंचने और उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने का अभियान जारी है।

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हादसे का विस्तृत विवरण: क्या हुआ exactly?

बताया जा रहा है कि रविवार रात करीब 10:30 बजे अचानक पहाड़ी का एक बड़ा चट्टानी हिस्सा टूटकर टनल के मुहाने पर आ गिरा। यह भूस्खलन इतना भीषण था कि उसने टनल के प्रवेश द्वार को पूरी तरह से जाम कर दिया। उस वक्त टनल के अंदर लगभग 40-45 कर्मचारी मौजूद थे। सौभाग्य से, भूस्खलन की आहट मिलते ही कई कर्मचारी बाहर निकलने में सफल रहे, लेकिन अंदर के हिस्से में काम कर रहे 19 लोग बाहर निकलने का रास्ता नहीं पा सके और वे अंदर ही फंस गए।

फंसे हुए कर्मचारियों के साथ संपर्क साधने की कोशिशें की जा रही हैं। रेस्क्यू टीमों का मानना है कि चूंकि टनल काफी लंबी है, इसलिए संभावना है कि कर्मचारी किसी सुरक्षित स्थान पर हों। टनल के अंदर ऑक्सीजन की सप्लाई और बिजली की व्यवस्था है, जो एक सकारात्मक संकेत है।

रेस्क्यू ऑपरेशन: चुनौतियाँ और कोशिशें

फंसे लोगों को बचाने का काम काफी चुनौतीपूर्ण है। मौके पर पहुंची एनडीआरएफ की टीमें भारी उपकरणों के साथ मलबा हटाने का काम कर रही हैं। हालांकि, मुख्य चुनौती लगातार जारी भूस्खलन की आशंका है। पहाड़ी का एक बार दरकना यह दर्शाता है कि वहां की चट्टानें कमजोर हैं और फिर से ढहने का खतरा बना हुआ है, जो रेस्क्यू कार्यवाई को धीमा और जोखिम भरा बना रहा है।

राहत बचाव दल टनल के वेंटिलेशन शाफ्ट के रास्ते भी अंदर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। सेना के इंजीनियर्स की टीम को भी मदद के लिए बुलाया गया है। उनका अनुभव इस तरह की जटिल परिस्थितियों में काम आ सकता है।

एक अधिकारी ने बताया, “हमारी पहली प्राथमिकता मलबे को हटाकर एक सुरक्षित मार्ग बनाना है। हमारे पास बुलडोजर और जेसीबी मशीनें लगी हुई हैं, लेकिन काम सावधानी से करना होगा ताकि कोई और हादसा न हो।”

क्यों होते हैं ऐसे हादसे? एक विशेषज्ञ दृष्टिकोण

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाके, खासकर हिमालयन क्षेत्र, भूगर्भिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माने जाते हैं। भूवैज्ञानिकों का मानना है कि यहां की चट्टानें young और fragile हैं, यानी नई और आसानी से टूटने वाली। बारिश, बर्फ पिघलना, या भूकंपीय गतिविधियाँ इन चट्टानों को और कमजोर कर देती हैं।

पर्यावरणविद् और भूविज्ञानी प्रोफेसर डॉ. एस. पी. सती कहते हैं, “हिमालयन क्षेत्र में बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, खासकर बांध और टनल निर्माण के दौरान बहुत अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। बिना उचित इंजीनियरिंग और पर्यावरणीय अध्ययन के पहाड़ों को काटना ऐसे हादसों को निमंत्रण देता है।”

इस इलाके में पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं। 2021 में टापोवन में ग्लेशियर टूटने और 2013 के केदारनाथ त्रासदी जैसी घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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क्या है धौलीगंगा परियोजना?

यह हादसा NHPC की 111 मेगावाट की धौलीगंगा हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट की टनल में हुआ है। यह परियोजना धौलीगंगा नदी पर बनाई जा रही है और इसका उद्देश्य क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति को बढ़ावा देना है। टनल इस परियोजना का एक अहम हिस्सा है, जो पानी को पावर हाउस तक पहुंचाने का काम करती है। इस तरह की परियोजनाओं में गहरी और लंबी टनलों का निर्माण शामिल होता है, जो inherently risky हो सकता है।

प्रशासन और सरकार की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घटना पर गहरी चिंता जताते हुए त्वरित राहत और बचाव कार्य के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि फंसे हुए हर शख्स को सुरक्षित निकालना सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है। जिला प्रशासन ने मौके पर एक कंट्रोल रूम बनाया है और लगातार स्थिति पर नजर बनाए हुए है।

निष्कर्ष: एक प्रतीक्षा और एक सबक

पिथौरागढ़ का यह हादसा एक बार फिर प्रकृति की अप्रत्याशित शक्ति और उसके सामने मानव निर्मित इंफ्रास्ट्रक्चर की नाजुकता को उजागर करता है। जब तक 19 फंसे कर्मचारी सुरक्षित बाहर नहीं आ जाते, पूरा देश उनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहा है।

यह घटना हमें एक महत्वपूर्ण सबक भी देती है: विकास के नाम पर पर्यावरण और भूगर्भिक स्थितियों की अनदेखी नहीं की जा सकती। पहाड़ों पर हो रहे निर्माण कार्यों में सुरक्षा मानकों को सर्वोच्च प्राथमिकता देना और नियमित ऑडिट करना अत्यंत आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सके। फिलहाल, सभी की निगाहें रेस्क्यू टीमों पर टिकी हैं, जो हर पल जोखिम उठाकर अपना काम कर रही हैं।

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