नई दिल्ली,गुवाहाटी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को एक बड़ी घोषणा करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकार की साझा कोशिशों से असम को घुसपैठियों( Infiltrators) से मुक्त कराया जा रहा है । उन्होंने बताया कि अब तक असम में 3500 एकड़ चरागाह( Grazing Land), 87,000 एकड़ वन भूमि( Forest Land) और 26,000 एकड़ सरकारी भूमि घुसपैठियों के कब्जे से मुक्त कराई जा चुकी है । यह कुल मिलाकर लगभग 1.16 लाख एकड़ जमीन है, जिसे अवैध कब्जे से छुड़ाकर सरकार ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है ।

यह घोषणा केवल आंकड़ों का खेल नहीं है, बल्कि असम की जनसांख्यिकी, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को बचाने की दिशा में एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम है । आइए गहराई से समझते हैं कि इसका क्या मतलब है और असम के लोगों के लिए इसके क्या मायने हैं ।

पृष्ठभूमि दशकों पुरानी समस्या का समाधान


असम में अवैध घुसपैठ, खासकर पड़ोसी बांग्लादेश से, एक लंबे समय से चली आ रही जटिल और संवेदनशील समस्या रही है । इसने न सिर्फ राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना( Demographic Fabric) को बदल दिया, बल्कि सीमित संसाधनों जैसे जमीन, नौकरियों और सार्वजनिक सुविधाओं पर भी गहरा दबाव डाला । अवैध रूप से बसे लोगों ने सरकारी जमीन, वन भूमि और चरागाहों पर अतिक्रमण( Encroachment) करना शुरू कर दिया, जिससे स्थानीय लोगों और indeed पर्यावरण को नुकसान पहुंचा ।

वन भूमि का अतिक्रमण राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आस- पास की जमीन पर अवैध कब्जे ने हाथियों और अन्य जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर दिया । इसके कारण मानव- वन्यजीव संघर्ष( mortal- Beast Conflict) की घटनाएं तेजी से बढ़ीं ।

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चरागाहों की दुर्दशा पशुपालन पर निर्भर स्थानीय समुदायों के लिए चरागाहों का सिमटना एक बड़ा संकट था । जानवरों के चरने की जगह कम होने से उनकी आजीविका प्रभावित हुई ।

सरकारी जमीन पर कब्जा सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए आरक्षित जमीन पर अवैध निर्माण ने विकास के कामों में रुकावट पैदा की ।

अमित शाह के बयान का विस्तृत विश्लेषण


गृह मंत्री के बयान में तीन प्रमुख प्रकार की भूमि का जिक्र है, जिन्हें मुक्त कराया गया है-

1. 3500 एकड़ चरागाह की भूमि


चरागाह( ग्राजिंग लैंड) वे सार्वजनिक भूभाग हैं जहां स्थानीय किसान और पशुपालक अपने मवेशियों को चराने ले जाते हैं । इन पर अतिक्रमण होने से पशुओं के लिए चारे का गंभीर संकट पैदा हो गया था । इन जमीनों को मुक्त कराने से न सिर्फ पशुपालकों को राहत मिलेगी, बल्कि दूध उत्पादन और पशुधन संबंधी अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा ।

2. 87,000 एकड़ वन भूमि


यह आंकड़ा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और चौंकाने वाला है । असम अपने घने जंगलों, राष्ट्रीय उद्यानों( जैसे काजीरंगा, मानस) और समृद्ध जैव विविधता के लिए जाना जाता है । वन भूमि पर अतिक्रमण पर्यावरणीय तबाही का कारण बन रहा था । इतनी बड़ी मात्रा में वन भूमि मुक्त होने से

वन्यजीवों के आवास की रक्षा होगी ।

पर्यावरण संतुलन बहाल करने में मदद मिलेगी ।

वन संरक्षण के प्रयासों को गति मिलेगी ।

3. 26,000 एकड़ सरकारी भूमि


सरकारी भूमि का मतलब ऐसी जमीन से है जो स्कूल, अस्पताल, सड़क, अन्य सार्वजनिक उपयोग की इमारतें या भविष्य की विकास परियोजनाओं के लिए आरक्षित है । इन पर अवैध कब्जा हटने से राज्य सरकार अब इनपर विकास के काम शुरू कर सकती है, जिसका सीधा लाभ जनता को मिलेगा ।

कैसे हुई यह मुक्ति? प्रक्रिया और चुनौतियां


इतनी बड़ी मात्रा में जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराना कोई आसान काम नहीं था । इसके पीछे एक सुनियोजित और कई बार कठोर अभियान चला ।

निरंतर ड्राइव असम सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में अतिक्रमण हटाने के लिए लगातार अभियान चलाए हैं । इनमें कई बार स्थानीय प्रशासन और पुलिस बल की बड़ी तैनाती शामिल रही ।

एनआरसी और एनएचआरसी का संदर्भ राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर( NRC) की प्रक्रिया ने अवैध नागरिकों की पहचान करने में मदद की । हालांकि एनआरसी अंतिम नहीं है, लेकिन इसने एक माहौल बनाया । इसके बाद राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर( NHRC) और फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल जैसे तंत्रों ने भी अवैध घुसपैठियों की पहचान में भूमिका निभाई ।

चुनौतियां और विवाद इन अभियानों के दौरान कई बार हिंसक झड़पें भी हुई हैं और राजनीतिक विवाद भी खड़े हुए हैं । मानवाधिकार संगठनों ने इन कार्रवाइयों पर सवाल भी उठाए हैं । सरकार का दावा है कि यह कानून और व्यवस्था के दायरे में रहकर, स्थानीय लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए किया गया है ।

भविष्य की राह आगे क्या?


इन जमीनों को मुक्त कराना केवल पहला कदम है । अब सबसे बड़ी चुनौती इनकी सुरक्षा और इनका सदुपयोग सुनिश्चित करने की है ।

चरागाहों का विकास सरकार इन चरागाहों को विकसित करने, हरा- चारा उगाने और पशुपालकों के लिए बेहतर सुविधाएं प्रदान करने की योजना बना सकती है ।

वन भूमि का पुनरुद्धार मुक्त कराई गई वन भूमि पर फिर से पेड़ लगाने( अफॉरेस्टेशन) और वन्यजीव गलियारों को पुनर्जीवित करने का काम किया जाएगा ।

सार्वजनिक विकास सरकारी जमीन का उपयोग अब स्कूल, कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र, खेल के मैदान और अन्य जनकल्याणकारी परियोजनाओं के लिए किया जा सकता है ।

निष्कर्ष एक साहसिक पहल


अमित शाह की यह घोषणा एक स्पष्ट संदेश देती है कि केंद्र सरकार असम समेत पूरे देश में अवैध घुसपैठ की समस्या को गंभीरता से ले रही है । 1.16 लाख एकड़ जमीन को मुक्त कराना न सिर्फ कानून व्यवस्था की दृष्टि से, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास की दृष्टि से भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है । इससे असम के मूल निवासियों, उनकी संस्कृति और उनके अधिकारों की रक्षा करने में मदद मिलेगी । हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में मानवीय संवेदनशीलता बरकरार रखना और मुक्त भूमि का उपयोग जनहित में सुनिश्चित करना ही इसकी स्थायी सफलता की कुंजी होगी ।

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अस्वीकरण( Disclaimer):यह लेख सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए लिखा गया है । इसमें दिए गए आंकड़े और तथ्य सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्रोतों और समाचार रिपोर्टों पर आधारित हैं । यह लेख किसी विशेष राजनीतिक दल या विचारधारा का समर्थन या विरोध नहीं करता । पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले अन्य स्रोतों से भी जानकारी प्राप्त करें ।

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